पुस्तक समीक्षा : "महाब्राह्मण" वह जीतकर भी क्यों हार गया?

Image : समीक्षक अखिलेश द्विवेदी, उपन्यास के साथ

वेब डेस्क, AYT News | श्री त्रिलोकनाथ पांडेय जी वरिष्ठ लेखक हैं। आप भारत सरकार के गृह मंत्रालय में थे, सराहनीय सेवाओं के लिए भारतीय पुलिस पदक और राष्ट्रपति से भी पदक प्राप्त हैं। पैतृक गांव उत्तर प्रदेश के जिला चंदौली में होने के कारण ग्रामीण और शहरी जीवन का आपको व्यापक अनुभव है। आपका चर्चित उपन्यास ( Mahabrahman, a Novel by Trilok Nath Pandey ) "महाब्राह्मण" "मैं"शैली में है जो इसे प्रमाणिक बनाती है, लेकिन पूरी पुस्तक में मैं सजातियों से प्रताड़ित और भागता नजर आता है। वह मृतकों का दान लेने और प्रेत तर्पण में मुख्य योगदान देने वाले महापात्र (महाब्राह्मण) परिवार से है। गांव व यजमानी के चक्रव्यूह में फंसा नायक परिवार और बिरादरी की कहानी बड़ी साफगोई से बताता है। दबंग और घमंडी पंडित मिसिर से कन्हई महाराज (कक्का) द्वारा पैर पड़ने पर विवश करवाना अच्छा लगा। नायक द्वारा माई से मिलने, उनकी पीड़ा और पुलिस में जाने के स्वप्न के पीछे पुलिस वालों द्वारा मां पर किए अत्याचार आक्रोश उत्पन्न करते हैं। मां से लगाव, उसका परिस्थितियों से समझौता करना, सब भाव विभोर करने वाले हैं।

चाहे मिसिर के बिगड़ैल पुत्र द्विज के रूप में हो, बाबू यादव के रूप में हो या चमटोल की, सबकी मानसिकता उत्तर प्रदेश और बिहार के गांव वालों जैसी ही है। हां, मरी माई वाली कहानी भी ग्रामीण लोक कथाओं जैसी मार्मिक है।अफसर बनकर नायक का विवाह प्रसंग में जल्दी से हामी भरना, पत्नी को अधिक छूट देना। गांव की बहन विद्या को घर ले आना और खुद आत्महत्या कर लेने में कहीं अधिक आदर्श, कहीं बनावट और कहीं उपन्यास को फिनिश करने की जल्दबाजी दिखी।

लेखक श्री त्रिलोक नाथ पांडेय

नायक त्रिभुवन नारायण मिश्रा की शिक्षा और लगन उससे अपने पैतृक कार्य से छुटकारा तो दिला गई लेकिन पुलिस अफसर बनकर भी वह अपनी बिरादरी, अपशगुनी मानी जाने वाली जाति और गांव की मानसिकता के आगे हार गया। उपन्यास में लेखक द्वारा सरकारी सेवा की पढ़ाई, परीक्षा, साक्षात्कार और प्रशिक्षण का अनुभव काम आया जो उपन्यास को बल प्रदान करता है। तेजी से बदलती घटनाओं से पाठक बंधा रहता है।

भाषा चाहे संस्कृतनिष्ठ हिंदी हो, विशुद्ध हिंदी हो, ठेठ देहाती या इटरव्यू आदि के प्रसंग में अंग्रेजी हो,सब में लेखक सिद्धहस्त हैं। इस उपन्यास में अछूते विषय को उठाना। ब्राह्मण समाज में उपजातियों के बंटवारे और उनके बीच भी जातीय दंभ समाज की विकट कहानी कहता है।

इतने बड़े प्रकाशन में भी प्रूफ की गलतियां आश्चर्य पैदा करती हैं। आशा है उन्हें अगले संस्करण में ठीक कर लिया जाएगा।

पुस्तक का नाम - महाब्राह्मण (उपन्यास)

लेखक - श्री त्रिलोक नाथ पांडेय

मूल्य - 299 (पेपरबैक)

प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन ,1-बी,नेताजी सुभाष मार्ग,दरियागंज,नई दिल्ली - 110002.

पुस्तक परिचय - अखिलेश द्विवेदी , नांगलोई, दिल्ली

( यह समीक्षक का निजी विचार है )

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